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एल्गो और हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग: समझें भारत में स्टॉक मार्केट की नई रफ्तार

समझें कि कैसे एल्गो और हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग भारतीय शेयर बाज़ार को बदल रही है, इसके फायदे, जोखिम और SEBI के नए नियम क्या हैं।

एल्गो और हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग: समझें भारत में स्टॉक मार्केट की नई रफ्तार

भारतीय शेयर बाज़ार अब पहले जैसा नहीं रहा। Technology ने इसके काम करने का तरीका पूरी तरह से बदल दिया है। आज, इंसानों से ज़्यादा कंप्यूटर प्रोग्राम्स यानी algorithms ट्रेड कर रहे हैं। भारत में होने वाले कुल ट्रेड्स का लगभग 50-55% हिस्सा अब एल्गो ट्रेडिंग से होता है।

इस बदलाव के केंद्र में हैं दो शक्तिशाली टेक्नोलॉजी - एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग (Algorithmic Trading) और हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग (High-Frequency Trading - HFT)। ये सिर्फ बड़े institutional investors का ही हथियार नहीं रहे, बल्कि अब retail investors के लिए भी इनके दरवाज़े खुल रहे हैं।

आइए, इस हाई-स्पीड ट्रेडिंग की दुनिया को करीब से समझते हैं।

मुख्य बातें (Key Takeaways)

  • Automated Trading: एल्गो ट्रेडिंग में कंप्यूटर प्रोग्राम पहले से तय नियमों (जैसे - कीमत, volume) के आधार पर अपने आप सौदे करते हैं।
  • स्पीड का खेल: हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग (HFT) एल्गो ट्रेडिंग का ही एक सुपर-फास्ट रूप है, जहाँ लाखों सौदे microsecond में होते हैं।
  • फायदे और जोखिम: ये technology बाज़ार में liquidity (तरलता) बढ़ाती है और कीमतों का अंतर (spread) कम करती है, लेकिन ‘फ्लैश क्रैश’ जैसे जोखिम भी पैदा करती है।
  • SEBI के नए नियम: 1 अगस्त, 2025 से, SEBI retail निवेशकों के लिए एल्गो ट्रेडिंग को सुरक्षित बनाने के लिए एक नया फ्रेमवर्क ला रहा है, जिसमें ब्रोकर और एक्सचेंजों की ज़िम्मेदारी बढ़ाई गई है।

एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग (Algo Trading) क्या है?

एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग, जिसे ‘एल्गो ट्रेडिंग’ या ‘ब्लैक-बॉक्स ट्रेडिंग’ भी कहते हैं, में कंप्यूटर प्रोग्राम का इस्तेमाल करके पहले से तय निर्देशों के आधार पर ट्रेड किया जाता है। ये निर्देश कीमत, समय, volume या किसी अन्य गणितीय मॉडल पर आधारित हो सकते हैं।

एक बार जब इन नियमों को प्रोग्राम कर दिया जाता है, तो कंप्यूटर बाज़ार को लगातार monitor करता है और जैसे ही शर्तें पूरी होती हैं, वह बिना किसी इंसानी दखल के तुरंत ऑर्डर दे देता है।

कौन इस्तेमाल करता है?

  • Institutional Investors: Mutual fund, pension fund, और hedge fund जैसे बड़े खिलाड़ी इसका इस्तेमाल बड़ी मात्रा में शेयर खरीदने-बेचने के लिए करते हैं ताकि बाज़ार पर ज़्यादा असर न पड़े।
  • Brokerage Firms: ये अपने ग्राहकों के लिए तेज़ी से ऑर्डर पूरा करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।
  • Proprietary Traders: ये अपने खुद के पैसे से तेज़ी से मुनाफा कमाने के लिए जटिल रणनीतियों का उपयोग करते हैं।

फायदे:

  • Speed and Efficiency: मशीनें इंसानों से कहीं ज़्यादा तेज़ी से और बिना थके काम कर सकती हैं।
  • No Emotional Bias: डर और लालच जैसी इंसानी भावनाएं ट्रेडिंग के फैसलों पर असर नहीं डालतीं।
  • Better Accuracy: गलतियाँ कम होती हैं क्योंकि सौदे पहले से तय नियमों पर आधारित होते हैं।

एक डायग्राम जो एल्गो ट्रेडिंग की प्रक्रिया को दर्शाता है: स्ट्रैटेजी -> ऑटोमेशन -> एग्जीक्यूशन

हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग (HFT): स्पीड का असली खेल

हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग (HFT) एल्गो ट्रेडिंग का एक एडवांस और आक्रामक रूप है। इसमें बहुत शक्तिशाली कंप्यूटर और जटिल algorithms का उपयोग करके बहुत बड़ी संख्या में ऑर्डर को millisecond या microsecond में execute किया जाता है।

HFT फर्म्स अक्सर अपनी स्पीड का फायदा उठाने के लिए स्टॉक एक्सचेंज के data center के पास ही अपने server लगाती हैं, जिसे ‘को-लोकेशन’ (co-location) कहते हैं। इससे उन्हें बाज़ार की जानकारी दूसरों से कुछ पल पहले मिल जाती है, और इसी कुछ पलों के अंतर में वे करोड़ों का मुनाफा कमा लेती हैं।

HFT की भूमिका और विवाद:

  • Liquidity प्रदान करना: HFT फर्म्स लगातार खरीद और बिक्री के ऑर्डर डालकर बाज़ार में liquidity बढ़ाती हैं। इससे आम निवेशकों के लिए किसी भी समय शेयर खरीदना या बेचना आसान हो जाता है।
  • Bid-Ask Spread कम करना: Liquidity बढ़ने से खरीद मूल्य (bid price) और बिक्री मूल्य (ask price) के बीच का अंतर कम हो जाता है, जिससे retail निवेशकों को बेहतर कीमत मिलती है।
  • विवाद (Controversies): HFT पर बाज़ार में अस्थिरता पैदा करने और अनुचित लाभ उठाने के आरोप लगते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ‘फ्लैश क्रैश’ (Flash Crash) है, जहाँ कुछ ही सेकंड में बाज़ार तेज़ी से गिरता है और फिर संभल जाता है। भारत में 5 अक्टूबर 2012 को निफ्टी में एक ऐसा ही फ्लैश क्रैश देखा गया था, जब एक गलत ऑर्डर की वजह से बाज़ार कुछ ही सेकंड में 15% से ज़्यादा गिर गया था।

एक और बड़ा विवाद NSE को-लोकेशन मामला है। इसमें आरोप था कि 2010 से 2014 के बीच NSE ने कुछ ब्रोकरों को अपने server तक तरजीही पहुँच (preferential access) दी, जिससे उन्हें दूसरों से पहले जानकारी मिली और उन्होंने अनुचित लाभ कमाया। इस मामले ने बाज़ार की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े किए और हाल ही में (जून 2025), NSE ने इस मामले को निपटाने के लिए SEBI को एक बड़ी रकम की पेशकश की है।

Retail इन्वेस्टर्स के लिए SEBI का नया नियम (2025)

एल्गो ट्रेडिंग की बढ़ती लोकप्रियता और जोखिमों को देखते हुए, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने retail निवेशकों के लिए इसे सुरक्षित बनाने के लिए एक नया रेगुलेटरी फ्रेमवर्क तैयार किया है, जो 1 अगस्त, 2025 से लागू होगा।

नए नियमों की मुख्य बातें:

  1. एक्सचेंज से मंजूरी ज़रूरी: ब्रोकर या कोई भी प्लेटफॉर्म retail निवेशकों को जो भी एल्गो उपलब्ध कराएगा, उसके लिए पहले स्टॉक एक्सचेंज से मंजूरी लेनी होगी।
  2. Unique Algo ID: हर एल्गो स्ट्रैटेजी को एक यूनिक ID दी जाएगी, ताकि हर ऑर्डर को ट्रैक किया जा सके और transparency बनी रहे।
  3. एल्गो का वर्गीकरण: एल्गो को दो श्रेणियों में बांटा जाएगा:
    • White Box: जिनकी ट्रेडिंग लॉजिक पारदर्शी और सबको पता होती है (जैसे - RSI इंडिकेटर पर आधारित)।
    • Black Box: जिनकी लॉजिक गुप्त रखी जाती है। ब्लैक बॉक्स एल्गो बेचने वालों को रिसर्च एनालिस्ट के तौर पर रजिस्टर होना पड़ सकता है।
  4. ब्रोकर की ज़िम्मेदारी: ब्रोकर की यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी होगी कि उनके प्लेटफॉर्म पर इस्तेमाल होने वाले सभी एल्गो नियमों का पालन करें। किसी भी गड़बड़ी के लिए ब्रोकर ही ज़िम्मेदार होगा।
  5. API सुरक्षा: API (Application Programming Interface) के ज़रिए होने वाली ट्रेडिंग को सुरक्षित बनाने के लिए टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन (2FA) और अन्य सुरक्षा उपाय ज़रूरी होंगे।

एक ग्राफिक जो SEBI के नए नियमों को दर्शाता है: एक्सचेंज अप्रूवल, यूनिक आईडी, और ब्रोकर की ज़िम्मेदारी

निष्कर्ष

Technology ने भारतीय शेयर बाज़ार को हमेशा के लिए बदल दिया है। एल्गो और HFT ने बाज़ार को पहले से कहीं ज़्यादा कुशल और तेज बना दिया है, लेकिन साथ ही नए जोखिम भी पैदा किए हैं।

SEBI का नया फ्रेमवर्क retail निवेशकों को एल्गो ट्रेडिंग की शक्ति का उपयोग करने का एक सुरक्षित और पारदर्शी तरीका देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सुनिश्चित करेगा कि technology का लाभ कुछ लोगों तक सीमित न रहे, बल्कि सभी के लिए एक समान अवसर पैदा करे। एक निवेशक के रूप में, इन बदलावों से अवगत रहना और सोच-समझकर निर्णय लेना पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है।


यह लेख केवल सूचना के उद्देश्यों के लिए है और निवेश पर सलाह नहीं है। निवेश से पहले अपना खुद का शोध अवश्य करें।

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