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बूढ़ा होने से पहले अमीर बनना: भारत की घटती आबादी का पूरा सच

भारत की Total Fertility Rate (TFR) खतरनाक रूप से गिर रही है, जो हमारे demographic dividend के अंत का संकेत है। यह एक संकट है या अवसर? आइए इस बड़े सामाजिक बदलाव के गहरे मतलब को समझते हैं।

बूढ़ा होने से पहले अमीर बनना: भारत की घटती आबादी का पूरा सच

भारत में इस समय एक बहुत बड़ा सामाजिक बदलाव हो रहा है, जिस पर mainstream media में लगभग कोई बात नहीं हो रही है। यह बदलाव हमारी जनसंख्या से जुड़ा है। भारत की Total Fertility Rate (TFR) तेजी से गिर रही है, और हम जन्म दर के मामले में सिकुड़ रहे हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर हमारा TFR अब केवल 2.0 है, जो 2.1 के replacement rate से नीचे है। Replacement rate वह दर है जिस पर एक पीढ़ी खुद को बदलती है। इससे नीचे जाने का मतलब है कि आबादी लंबे समय में घटने लगेगी। अनुमान है कि 2035 तक हमारा TFR 1.7 तक भी पहुंच सकता है।

इसका सबसे ठोस और साफ सबूत पिछले कुछ सालों से स्कूलों में छात्रों के एडमिशन में लगातार आ रही कमी है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अब उतने बच्चे पैदा ही नहीं हो रहे हैं।

घटते स्कूल नामांकन का चार्ट

यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि हमारे भविष्य का एक महत्वपूर्ण indicator है। कुछ ही सालों में, भारत को युवाओं की आबादी में कमी का सामना करना पड़ेगा। Dependency ratio (काम करने वाले युवाओं पर आश्रित बुजुर्गों का अनुपात) बदलना शुरू हो जाएगा। और आखिरकार, हमारा बहुचर्चित “demographic dividend” खत्म हो जाएगा।

यह हमें एक बहुत बड़े सवाल के सामने खड़ा करता है: क्या हम बूढ़े होने से पहले अमीर बन पाएंगे?

घटती आबादी: संकट या अवसर?

इस घटती आबादी को लेकर दो तरह की सोच सामने आती है।

1. यह एक गहराता संकट है

इस नजरिए के अनुसार, यह एक गंभीर चुनौती है। हमारा demographic dividend, यानी हमारी युवा आबादी, हमारी सबसे बड़ी ताकत रही है। अगर हम इस युवा शक्ति का इस्तेमाल करोड़ों नई formal jobs पैदा करने में नहीं कर पाए, तो हम एक सुनहरा मौका खो देंगे।

समस्या यह है कि मौजूदा economic model इसके ठीक उल्टा काम करता दिख रहा है। नौकरियां पैदा होने की दर धीमी है, salary growth रुकी हुई है, और घर खरीदने जैसी बुनियादी जरूरतें आसमान छू रही हैं। कई युवा job market की चुनौतियों, कम वेतन और महंगाई के कारण शादी करने और परिवार शुरू करने से बच रहे हैं। यह आर्थिक दबाव सीधे तौर पर जन्म दर को प्रभावित कर रहा है।

नौकरी निर्माण पर डेटा

अगर हम इस चक्र को नहीं तोड़ पाए, तो भविष्य में हमारे पास एक बड़ी बूढ़ी आबादी होगी जिसके पास पर्याप्त social security नहीं होगी, और उनकी देखभाल के लिए एक छोटा युवा workforce होगा।

2. यह एक छिपा हुआ अवसर है

दूसरी ओर, एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो इस गिरावट को एक positive विकास के रूप में देखता है। उनका तर्क है कि भारत एक बहुत ज्यादा आबादी वाला देश है। 140 करोड़ से ज्यादा की आबादी हमारे resources पर भारी दबाव डालती है।

इस विचार के समर्थकों का मानना है कि कम आबादी का मतलब होगा:

  • बेहतर जीवन स्तर: प्रति व्यक्ति resources की उपलब्धता बढ़ेगी।
  • गरीबी में कमी: कम लोगों के लिए quality life सुनिश्चित करना आसान होगा।
  • पर्यावरण पर कम दबाव: शहरी झुग्गियों और भीड़भाड़ से राहत मिलेगी।

उनका कहना है कि हमें “संख्या” के बजाय “गुणवत्ता” पर ध्यान देना चाहिए। एक छोटी, लेकिन ज्यादा कुशल, शिक्षित और स्वस्थ आबादी देश के लिए ज़्यादा फायदेमंद हो सकती है। यह एक global trend भी है; जापान और इटली जैसे देशों के कई छोटे शहर और गांव घटती आबादी की समस्या से जूझ रहे हैं।

असली चुनौती संख्या नहीं, Productivity है

यह बहस हमें एक गहरी सच्चाई की ओर ले जाती है: असली मुद्दा शायद लोगों की संख्या नहीं, बल्कि उनकी productivity और क्षमता है। भले ही हमारी कामकाजी उम्र की आबादी कम हो जाए, हम कुछ जरूरी क्षेत्रों में सुधार करके growth की रफ्तार बनाए रख सकते हैं:

  1. Labour Productivity: भारत में productivity अभी भी बहुत कम है। Technology, बेहतर training और कुशल process के जरिए हम कम लोगों के साथ अधिक उत्पादन कर सकते हैं।
  2. Labour Force Participation (LFPR): खासकर महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी (FLFPR) बहुत कम है। अगर हम ज्यादा महिलाओं को workforce में शामिल कर पाएं, तो यह घटती आबादी के असर को balance कर सकता है।
  3. Automation और Technology: इन क्षेत्रों में invest करके हम manual labour पर अपनी निर्भरता कम कर सकते हैं।
  4. Sectors में बदलाव: कृषि क्षेत्र से labour को निकालकर उन्हें manufacturing और service sectors में लाना जरूरी है।

अगर हम इन क्षेत्रों में सुधार करते हैं, तो हम कम workforce के साथ भी एक मजबूत economy बनाए रख सकते हैं।

आगे का रास्ता क्या है?

हम अपनी राष्ट्रीय यात्रा के एक अहम मोड़ पर खड़े हैं। घटती fertility rate एक सच्चाई है जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। यह अच्छा है या बुरा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम आज क्या कदम उठाते हैं।

  • Economic Policies: हमें एक ऐसे economic model की जरूरत है जो बड़े पैमाने पर formal, अच्छी salary वाली नौकरियां पैदा करे।
  • Social Security: हमें अपनी बढ़ती हुई बुजुर्ग आबादी के लिए healthcare और social security के infrastructure में भारी निवेश करना होगा।
  • Human Capital: सभी के लिए मुफ्त और quality education और healthcare सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। यही हमारी आबादी को एक asset में बदलेगा।

अंत में, यह बहस “कम लोग बनाम ज़्यादा लोग” की नहीं होनी चाहिए। असली सवाल यह है कि हम अपनी आबादी के लिए, चाहे उसका आकार कुछ भी हो, एक समृद्ध, productive और न्यायसंगत समाज कैसे बना सकते हैं।

घड़ी तेजी से चल रही है। हमारे बूढ़े होने से पहले अमीर बनने की दौड़ शुरू हो चुकी है।

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