Corporate Actions Explained: डिविडेंड, स्टॉक स्प्लिट और बोनस की पूरी गाइड
शेयर बाजार में डिविडेंड, स्टॉक स्प्लिट, बोनस इश्यू, बायबैक और राइट्स इश्यू जैसे Corporate Actions का क्या मतलब है? जानें ये आपके investment को कैसे प्रभावित करते हैं।

जब आप किसी कंपनी के shares खरीदते हैं, तो आप उस कंपनी में हिस्सेदार बन जाते हैं। समय-समय पर, ये कंपनियां कुछ ऐसे फैसले लेती हैं जिनका सीधा असर उनके stocks और shareholders पर पड़ता है। इन्हीं फैसलों को Corporate Action कहा जाता है।
एक investor के रूप में, इन Corporate Actions को समझना आपके लिए बहुत ज़रूरी है, क्योंकि ये आपके investment की value को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं। चलिए, सबसे आम Corporate Actions को आसान भाषा में समझते हैं।
मुख्य बातें (Key Takeaways)
- Corporate Action कंपनी द्वारा लिए गए वे फैसले हैं जो उसके शेयरों की संख्या, कीमत और shareholders को प्रभावित करते हैं।
- Dividend कंपनी के profit का बंटवारा है, जबकि Stock Split और Bonus Issue शेयरों की संख्या बढ़ाते हैं ताकि वे ज्यादा affordable लगें।
- Buyback से बाजार में शेयरों की संख्या कम हो जाती है, जिससे बचे हुए शेयरों की value बढ़ सकती है।
- इन actions की तारीखों, खासकर Ex-Date, पर नज़र रखना ज़रूरी है ताकि आप मिलने वाले फायदों से चूक न जाएं।
Corporate Actions के प्रकार
मुख्य रूप से पांच तरह के Corporate Action होते हैं जिनके बारे में हर investor को पता होना चाहिए।
1. डिविडेंड (Dividend)
जब कोई कंपनी profit कमाती है, तो वह उस profit का एक हिस्सा अपने shareholders के साथ बांटने का फैसला कर सकती है। इसी को डिविडेंड कहते हैं। यह investors के लिए regular income का एक ज़रिया हो सकता है।
डिविडेंड प्रोसेस में कुछ तारीखें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं:
- Declaration Date: जिस दिन कंपनी के Board of Directors डिविडेंड देने की घोषणा करते हैं।
- Ex-Dividend Date (Ex-Date): यह सबसे महत्वपूर्ण तारीख है। डिविडेंड पाने के लिए आपको इस तारीख से पहले शेयर खरीदना होगा। अगर आप Ex-Date या उसके बाद शेयर खरीदते हैं, तो आपको डिविडेंड नहीं मिलेगा।
- Record Date: इस दिन, कंपनी अपने records चेक करती है कि कौन-कौन से shareholder डिविडेंड पाने के योग्य हैं। भारत में T+1 settlement cycle के कारण, Ex-Date और Record Date अब एक ही दिन होती हैं। हालांकि, डिविडेंड पाने के लिए आपको Record Date से पहले शेयर खरीदना होगा ताकि T+1 दिन में शेयर आपके Demat account में आ जाए।
- Payment Date: जिस दिन कंपनी योग्य shareholders के bank account में डिविडेंड का पैसा भेजती है।
टैक्स का नियम: भारत में, डिविडेंड से होने वाली आय को आपकी कुल आय में जोड़ा जाता है और आपके income tax slab के अनुसार उस पर टैक्स लगता है। अगर एक वित्तीय वर्ष में आपकी डिविडेंड आय ₹5,000 से ज़्यादा है, तो कंपनी पेमेंट करने से पहले 10% TDS (Tax Deducted at Source) काटती है।
2. स्टॉक स्प्लिट (Stock Split)
Stock Split का मतलब है एक शेयर को कई हिस्सों में बांटना। इसका मुख्य उद्देश्य शेयर की कीमत को कम करके उसे छोटे investors के लिए ज्यादा affordable बनाना और बाजार में उसकी liquidity (यानी खरीद-बिक्री में आसानी) बढ़ाना है।
उदाहरण: मान लीजिए, आपके पास ABC कंपनी का 1 शेयर है जिसकी कीमत ₹2000 है और उसकी Face Value ₹10 है। कंपनी 1:1 के अनुपात में stock split की घोषणा करती है।
- स्प्लिट के बाद: आपके पास ₹1000 की कीमत वाले 2 शेयर होंगे और हर शेयर की Face Value ₹5 हो जाएगी।
- निवेश का कुल मूल्य: स्प्लिट से पहले (1 x ₹2000 = ₹2000) और स्प्लिट के बाद (2 x ₹1000 = ₹2000) आपका कुल investment value समान रहता है।
याद रखें, stock split में शेयर की Face Value भी उसी अनुपात में कम हो जाती है।
3. बोनस इश्यू (Bonus Issue)
Bonus Issue में, कंपनी अपने मौजूदा shareholders को मुफ्त में अतिरिक्त शेयर देती है। यह कंपनी का अपने shareholders को reward देने का एक तरीका है, जिसके लिए वो अपने reserves (संचित भंडार) का इस्तेमाल करती है।
उदाहरण: मान लीजिए, आपके पास XYZ कंपनी के 100 शेयर हैं। कंपनी 1:1 के bonus issue की घोषणा करती है, यानी हर 1 शेयर के लिए 1 मुफ्त बोनस शेयर।
- बोनस के बाद: आपके पास कुल 200 शेयर (100 पुराने + 100 बोनस) हो जाएंगे।
- कीमत पर असर: बोनस के बाद शेयरों की संख्या दोगुनी हो जाने से प्रति शेयर की कीमत लगभग आधी हो जाएगी, लेकिन आपके investment की कुल value वही रहेगी।
Stock Split और Bonus में अंतर: Bonus Issue में शेयर की Face Value नहीं बदलती, जबकि Stock Split में बदल जाती है।
4. शेयर बायबैक (Share Buyback)
Buyback में कंपनी अपने ही शेयर बाजार से या सीधे shareholders से वापस खरीदती है। इससे बाजार में उपलब्ध शेयरों की संख्या (outstanding shares) कम हो जाती है।
बायबैक के कारण:
- कंपनी के पास अतिरिक्त cash होता है जिसे वह shareholders को लौटाना चाहती है।
- यह Earnings Per Share (EPS) को बढ़ाता है।
- यह मैनेजमेंट का कंपनी के भविष्य में विश्वास दिखाता है।
Buyback दो तरीकों से होता है: Tender Offer (जिसमें कंपनी एक निश्चित कीमत पर शेयर वापस खरीदने की पेशकश करती है) या Open Market (जिसमें कंपनी सीधे बाजार से शेयर खरीदती है)।
5. राइट्स इश्यू (Rights Issue)
Rights Issue के जरिए कंपनी अपने मौजूदा shareholders को अतिरिक्त शेयर खरीदने का मौका देती है। ये शेयर आमतौर पर बाजार मूल्य से छूट (discount) पर पेश किए जाते हैं। कंपनी ऐसा तब करती है जब उसे विस्तार, कर्ज चुकाने या किसी अन्य काम के लिए capital (पूंजी) जुटाने की जरूरत होती है।
Shareholders के पास तीन विकल्प होते हैं:
- अपने अधिकार का प्रयोग करें और discounted price पर शेयर खरीदें।
- अपने अधिकारों को अनदेखा करें (जिससे कंपनी में उनकी हिस्सेदारी कम हो सकती है)।
- यदि राइट्स renounceable हैं, तो वे उन्हें किसी अन्य investor को बेच सकते हैं।
यह लेख केवल सूचना के उद्देश्यों के लिए है और निवेश पर सलाह नहीं है। निवेश से पहले अपना स्वयं का शोध अवश्य करें।
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