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Hospitals का 'No Beds' वाला खेल: 65% Bed खाली, फिर भी Record मुनाफा?

भारत के बड़े hospital ~65% occupancy पर भी record मुनाफ़ा कमा रहे हैं। इसका राज़ है ARPOB और 'clinical mix' पर focus, जहाँ ज़्यादा पैसे वाले मरीज़ों को प्राथमिकता दी जाती है। जानिए यह system कैसे काम करता है और आम आदमी पर इसका क्या असर पड़ रहा है।

Hospitals का 'No Beds' वाला खेल: 65% Bed खाली, फिर भी Record मुनाफा?

आपने हाल ही में यह ज़रूर सुना या अनुभव किया होगा: किसी मरीज़ को hospital में भर्ती कराने की ज़रूरत है, लेकिन हर बड़े hospital से एक ही जवाब मिलता है - “Sorry, no beds available.” यह सुनकर लगता है कि हमारे hospitals मरीज़ों से भरे पड़े हैं। लेकिन आंकड़े एक अलग ही कहानी बताते हैं।

भारत में औसतन hospital occupancy rates लगभग 61-65% हैं। इसका मतलब है कि किसी भी समय लगभग 35% beds खाली रहते हैं। तो फिर यह उलझन क्यों है? कैसे hospitals एक तरफ bed न होने की बात करते हैं और दूसरी तरफ Apollo, Fortis, और Medanta जैसे बड़े hospital chains record तोड़ मुनाफ़ा कमा रहे हैं?

यह कोई घोटाला नहीं, बल्कि एक सोची-समझी business strategy है। आइए समझते हैं कि यह खेल कैसे काम करता है।

मुनाफ़े का मीटर: ARPOB को समझिए

Healthcare sector में एक बहुत महत्वपूर्ण metric होता है - ARPOB, यानी Average Revenue Per Occupied Bed। आसान भाषा में, जैसे एक hotel यह track करता है कि उसे हर भरे हुए कमरे से कितनी कमाई हो रही है, वैसे ही एक hospital यह track करता है कि उसे हर भरे हुए bed से रोज़ाना कितनी कमाई हो रही है।

और आज के समय में, भारत के बड़े hospital chains का ARPOB अपने उच्चतम स्तर पर है। कुछ ताज़ा आंकड़े देखें:

  • Max Hospital: ~₹80,100 प्रति दिन प्रति bed (Q1 FY25)
  • Fortis: ~₹67,000 प्रति दिन प्रति bed
  • Medanta: ~₹64,000 प्रति दिन प्रति bed
  • Apollo Hospitals: ~₹59,000 प्रति दिन प्रति bed

प्रमुख भारतीय अस्पतालों के ARPOB आंकड़े

ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं। सवाल यह है कि अगर केवल 65% beds ही भरे हैं, तो इतनी ज़्यादा कमाई कैसे हो रही है? इसका जवाब ‘Clinical Mix’ की रणनीति में छिपा है।

खेल ‘Clinical Mix’ का

’Clinical Mix’ का मतलब है कि एक hospital किस तरह के medical procedures और मरीज़ों का इलाज कर रहा है। इलाज को उनकी जटिलता और लागत के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

  1. Primary Care: यह सामान्य देखभाल है, जैसे डॉक्टर से सलाह लेना, routine checkup, यानी OPD care।
  2. Secondary Care: इसमें छोटे-मोटे ऑपरेशन शामिल हैं, जिनके लिए कम समय के लिए hospital में भर्ती होना पड़ता है, जैसे मोतियाबिंद का ऑपरेशन या फ्रैक्चर का इलाज।
  3. Tertiary Care: इसके लिए specialist डॉक्टरों और advanced उपकरणों की ज़रूरत होती है, जैसे डायलिसिस या कैंसर का इलाज।
  4. Quaternary Care: यह सबसे जटिल और विशेष इलाज है, जो कुछ ही hospital कर पाते हैं, जैसे organ transplant या जटिल neurosurgery।

नियम सीधा है: procedure जितना जटिल होगा, hospital की प्रति bed कमाई (ARPOB) उतनी ही ज़्यादा होगी।

एक Primary Care का मरीज़ hospital के लिए प्रतिदिन ₹5,000 से ₹15,000 कमा कर देता है। वहीं, एक Quaternary Care का मरीज़ प्रतिदिन ₹1,50,000 से ₹5,00,000 तक की कमाई करा सकता है।

आजकल, भारतीय hospitals जानबूझकर अपना ‘Clinical Mix’ ऐसा बना रहे हैं जिसमें Tertiary और Quaternary procedures की हिस्सेदारी ज़्यादा हो। यही वजह है कि कम bed भरे होने के बावजूद, वे मोटी कमाई कर पा रहे हैं। वे 10 सामान्य मरीज़ों की जगह एक ज़्यादा मुनाफ़ा देने वाले मरीज़ को प्राथमिकता दे रहे हैं।

यह कोई छिपी हुई बात नहीं है। Hospital का management अपनी earning calls में खुलकर इस रणनीति की चर्चा करता है।

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आम आदमी के लिए इसका क्या मतलब है?

जब hospitals, ARPOB को optimize करने लगते हैं, तो आपका इलाज इस बात पर निर्भर करने लगता है कि आप hospital के लिए कितना पैसा कमा कर दे सकते हैं, न कि आपकी ज़रूरत कितनी गंभीर है।

यही कारण है कि जब आप किसी सामान्य बीमारी के लिए bed ढूंढते हैं, तो आपको “bed खाली नहीं है” का जवाब मिल सकता है, जबकि हो सकता है कि bed physically खाली हो। वह bed किसी ऐसे मरीज़ के लिए reserve रखा गया है जिसे ज़्यादा जटिल और महंगे इलाज की ज़रूरत है।

यह रणनीति airline और hotel industry की ‘Yield Management’ जैसी है, जहाँ हर सीट या कमरे से अधिकतम revenue निकालने पर ज़ोर दिया जाता है। जहाँ मांग ज़्यादा हो, क्षमता सीमित हो और fixed cost ज़्यादा हो, वहाँ ऐसी रणनीतियाँ आम हैं। फर्क बस इतना है कि यहाँ बात किसी सीट या कमरे की नहीं, बल्कि इंसान की ज़िंदगी की है।

एक और पहलू staff का है। एक जटिल सर्जरी वाले मरीज़ पर nursing staff को लगाना hospital के लिए ज़्यादा फायदेमंद है, बजाय इसके कि उसी staff को कम return वाले मरीज़ों पर लगाया जाए। इसलिए, कम मुनाफ़े वाले bed को खाली रखना भी एक तरह की resource management strategy बन गई है।

निष्कर्ष: सेवा या व्यवसाय?

यह trend साफ दिखाता है कि healthcare अब सेवा से कहीं ज़्यादा एक शुद्ध business बन चुका है। जब मरीज़ के इलाज का फैसला उसकी बीमारी की गंभीरता से ज़्यादा उसकी आर्थिक क्षमता पर होने लगे, तो यह एक खतरनाक स्थिति है।

Hospitals, बीमा कंपनियों और pharma कंपनियों का गठजोड़ मरीज़ों का शोषण कर रहा है, क्योंकि सरकारी स्वास्थ्य सेवाएँ चरमरा गई हैं। बिना सख्त regulation के यह प्रवृत्ति बढ़ती ही जाएगी, और आम आदमी के लिए अच्छा इलाज एक सपना बनकर रह जाएगा।

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