भारत के 3 सबसे बड़े Stock Market Scams: जिनसे हमने सीखा सबक
हर्षद मेहता 1992, केतन पारेख 2001 और सत्यम 2009 - इन घोटालों ने भारतीय शेयर बाजार को हमेशा के लिए बदल दिया। जानिए इन ऐतिहासिक मामलों से हमने क्या महत्वपूर्ण सबक सीखे।

Stock market का नाम सुनते ही जहां एक तरफ दौलत बनाने का सपना आंखों में तैर जाता है, वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐतिहासिक घोटालों की यादें भी ताजा हो जाती हैं। भारतीय stock market का इतिहास ऐसे ही कुछ बड़े financial scams का गवाह रहा है, जिन्होंने न केवल investors का भरोसा तोड़ा, बल्कि पूरे system को हिलाकर रख दिया।
लेकिन हर संकट अपने साथ एक अवसर लेकर आता है। इन घोटालों ने हमारे market regulators को जगाया और ऐसे सुधारों की नींव रखी, जिनकी वजह से आज का भारतीय बाजार पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित और पारदर्शी है। आइए, भारत के तीन सबसे बड़े stock market scams पर नजर डालें और उनसे मिले सबक को समझें।
इस आर्टिकल की खास बातें
- हर्षद मेहता Scam (1992): इस घोटाले ने banking system की खामियों को उजागर किया और SEBI को मजबूत बनाने का रास्ता खोला।
- केतन पारेख Scam (2001): इसने circular trading और ‘pump and dump’ जैसी गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए regulatory सुधारों को प्रेरित किया।
- सत्यम Fiasco (2009): यह corporate fraud का एक बड़ा मामला था, जिसने corporate governance और auditing के महत्व को समझाया।
1. हर्षद मेहता स्कैम (1992) - The Big Bull Scam
1990 के दशक की शुरुआत में हर्षद मेहता भारतीय stock market का वो नाम था, जिसे ‘बिग बुल’ कहा जाता था। वह जिस भी stock पर हाथ रख देता, उसकी कीमतें आसमान छूने लगती थीं। लेकिन इस तेजी के पीछे एक बहुत बड़ा घोटाला छिपा था।
कैसे हुआ यह घोटाला? हर्षद मेहता ने banking system की एक बड़ी खामी का फायदा उठाया। उस समय बैंक Ready Forward (RF) deals के जरिए short-term लोन का लेन-देन करते थे, जिसके लिए वे Bank Receipts (BRs) का इस्तेमाल करते थे। मेहता ने कुछ बैंकों के साथ मिलकर नकली BRs बनवाए, जिनके पीछे कोई असली सरकारी बॉन्ड नहीं थे।
इन नकली BRs के जरिए उसने बैंकों से भारी मात्रा में पैसा उठाया और उसे stock market में लगा दिया। इस पैसे से उसने ACC जैसे stocks की कीमतों में बनावटी तौर पर भारी उछाल ला दिया। ACC का share कुछ ही महीनों में ₹200 से बढ़कर ₹9,000 तक पहुंच गया। जब पत्रकार सुचेता दलाल ने इस scam का पर्दाफाश किया, तो market ताश के पत्तों की तरह ढह गया और लाखों investors को भारी नुकसान हुआ।
2. केतन पारेख स्कैम (2001) - Dot-com Bubble का भारतीय संस्करण
हर्षद मेहता का ही शिष्य माना जाने वाला केतन पारेख 2000 के दशक की शुरुआत में technology stocks का नया ‘बिग बुल’ बनकर उभरा। उसने भी अपने गुरु की तरह ही market को manipulate करने का रास्ता चुना।
कैसे हुआ यह घोटाला? केतन पारेख ने 10 चुनिंदा stocks में हेरफेर किया, जिन्हें ‘K-10’ stocks के नाम से जाना जाने लगा। उसने circular trading का इस्तेमाल किया, जिसमें operators का एक समूह आपस में ही share खरीद-बेचकर volume और कीमत में बनावटी उछाल लाता है। इसे ‘pump and dump’ स्कीम भी कहते हैं, जहां पहले कीमत बढ़ाई जाती है और फिर ऊंचे स्तर पर share बेचकर मुनाफा कमाया जाता है।
पारेख ने इस खेल के लिए माधवपुरा मर्केंटाइल को-ऑपरेटिव बैंक जैसे छोटे बैंकों से अवैध रूप से fund हासिल किया। जब यह घोटाला सामने आया, तो न केवल K-10 stocks बुरी तरह गिरे, बल्कि इसने investors के भरोसे को एक बार फिर तोड़ दिया।
3. सत्यम फिआस्को (2009) - भारत का Enron Moment
यह scam पिछले दो घोटालों से अलग था। यह market manipulation का नहीं, बल्कि corporate fraud का एक क्लासिक मामला था। सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज, जो उस समय भारत की चौथी सबसे बड़ी IT कंपनी थी, के संस्थापक और चेयरमैन रामलिंगा राजू ने खुद यह स्वीकार किया कि वह कई सालों से कंपनी के खातों में हेरफेर कर रहे थे।
कैसे हुआ यह घोटाला? 7 जनवरी 2009 को राजू ने एक पत्र में कबूल किया कि कंपनी की balance sheet में दिखाया गया cash और बैंक बैलेंस काल्पनिक था। उसने कंपनी के revenue, profits और assets को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया था ताकि कंपनी की एक अच्छी छवि बनी रहे और share की कीमत ऊंची बनी रहे। यह घोटाला लगभग ₹7,000 करोड़ का था और इसने corporate governance और auditing firms की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
इन घोटालों से हमने क्या सीखा (और क्या सुधार हुए)?
हालांकि इन scams से investors को भारी नुकसान हुआ, लेकिन इन्होंने भारत के financial system में कई जरूरी और positive सुधारों को जन्म दिया।
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SEBI को मिली मजबूती: 1992 के घोटाले से पहले, SEBI एक सलाहकार संस्था मात्र थी जिसके पास ज्यादा शक्तियां नहीं थीं। इस घोटाले के बाद सरकार ने SEBI Act, 1992 पारित किया, जिससे SEBI एक शक्तिशाली regulator बना। अब SEBI के पास जांच करने, जुर्माना लगाने और बाजार को regulate करने की पूरी ताकत है।
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पारदर्शिता और टेक्नोलॉजी: इन घोटालों के बाद बाजार में पारदर्शिता बढ़ाने पर जोर दिया गया। शेयरों के फिजिकल सर्टिफिकेट्स की जगह Dematerialization (Demat) को अनिवार्य किया गया, जिससे धोखाधड़ी की गुंजाइश कम हो गई। Online और electronic trading systems ने यह पक्का किया कि सभी सौदे पारदर्शी तरीके से हों।
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Corporate Governance के सख्त नियम: सत्यम घोटाले ने कंपनियों के अंदरूनी कामकाज की खामियों को उजागर किया। इसके बाद, कंपनियों के लिए corporate governance के नियमों को सख्त बनाया गया। इसमें स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका को बढ़ाना, ऑडिट समितियों को अधिक शक्तिशाली बनाना और financial खुलासों को अधिक पारदर्शी बनाना शामिल था।
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Investor सुरक्षा पर फोकस: इन सभी सुधारों का केंद्र बिंदु investor, खासकर छोटे retail investors के हितों की रक्षा करना था। आज निवेशक जागरूकता अभियान और शिकायत सुलझाने के तरीके पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हैं।
संक्षेप में, हर्षद मेहता, केतन पारेख और सत्यम घोटाले भारतीय stock market के इतिहास के काले अध्याय हैं। लेकिन इन्हीं की वजह से आज हमारा बाजार regulation, पारदर्शिता और corporate governance के मामले में दुनिया के बेहतर बाजारों में से एक है। एक investor के तौर पर इन घटनाओं से सीखना और हमेशा सतर्क रहना ही सफलता की कुंजी है।
यह लेख केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है और इसे निवेश की सलाह नहीं माना जाना चाहिए। निवेश करने से पहले अपनी खुद की research जरूर करें।
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