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EBITDA से CAGR तक: शेयर मार्केट को एक प्रो की तरह समझें

EBITDA, D/E Ratio, MCAP, CAGR और दूसरे जरूरी financial ratios को आसान भाषा में असली उदाहरणों के साथ समझें और अपने investment decisions को बेहतर बनाएं।

EBITDA से CAGR तक: शेयर मार्केट को एक प्रो की तरह समझें

शेयर मार्केट में invest करना सिर्फ शेयर खरीदने और बेचने से कहीं ज़्यादा है। यह कंपनियों की financial health को समझने और सही फैसले लेने के बारे में है। अक्सर नए investors, EBITDA, CAGR, D/E Ratio जैसे शब्द सुनकर confuse हो जाते हैं। लेकिन घबराने की कोई बात नहीं!

यह गाइड इन मुश्किल लगने वाले financial ratios को आसान भाषा में और असली उदाहरणों के साथ समझाएगी। इन्हें समझकर आप किसी भी कंपनी का बेहतर analysis कर पाएंगे और एक प्रो इन्वेस्टर की तरह सोच सकेंगे।

इस गाइड में आप जानेंगे:

  • EBITDA कंपनी की operating profitability को दिखाता है।
  • D/E Ratio कंपनी के financial risk और कर्ज को मापता है।
  • Market Cap (MCAP) कंपनी का size बताता है - Large, Mid, या Small Cap।
  • CAGR किसी investment की compound annual growth rate को दिखाता है।

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1. EBITDA (Earnings Before Interest, Taxes, Depreciation & Amortization)

EBITDA का मतलब है ब्याज, टैक्स, और depreciation जैसी non-cash लागतों से पहले की कमाई। यह किसी कंपनी की core operational profitability को मापने का एक तरीका है। यह दिखाता है कि कंपनी अपने मुख्य business से कितना पैसा कमा रही है, बिना financing और accounting के तरीकों को गिने।

  • यह क्यों जरूरी है? यह investors को अलग-अलग कंपनियों के operational performance की तुलना करने में मदद करता है, भले ही उनके tax rates या कर्ज की structure अलग-अलग क्यों न हो।

  • उदाहरण: मान लीजिए एक कंपनी का revenue ₹500 करोड़ है और उसका EBITDA ₹300 करोड़ है। तो, उसका EBITDA Margin 60% (₹300 करोड़ / ₹500 करोड़) होगा। यह एक बहुत ही healthy margin माना जाता है।

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2. D/E Ratio (Debt-to-Equity Ratio)

Debt-to-Equity (D/E) Ratio यह मापता है कि एक कंपनी अपने operations को finance करने के लिए कर्ज पर कितनी निर्भर है। यह कंपनी के कुल कर्ज की तुलना उसके shareholders’ equity से करता है।

  • फॉर्मूला: D/E Ratio = कुल कर्ज (Total Debt) / शेयरहोल्डर इक्विटी (Shareholders' Equity)

  • यह क्यों जरूरी है? यह कंपनी के financial leverage और risk का एक अहम indicator है।

    • D/E < 1: आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है।
    • D/E > 2: ज्यादा risk का संकेत हो सकता है, क्योंकि कंपनी कर्ज पर बहुत अधिक निर्भर है।
  • उदाहरण: अगर किसी कंपनी पर ₹200 करोड़ का कर्ज है और उसकी equity ₹400 करोड़ है, तो उसका D/E Ratio 0.5 (₹200 करोड़ / ₹400 करोड़) होगा। यह एक healthy ratio है।

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3. Market Capitalization (MCAP)

Market Capitalization या MCAP किसी कंपनी के सभी शेयरों का कुल market value है। यह कंपनी के size को दिखाता है।

  • फॉर्मूला: MCAP = शेयर की कीमत (Share Price) × कुल शेयर (Total Outstanding Shares)

  • यह क्यों जरूरी है? MCAP के आधार पर कंपनियों को आम तौर पर तीन categories में बांटा जाता है:

    • Large-Cap: ₹20,000 करोड़ से ज़्यादा
    • Mid-Cap: ₹5,000 करोड़ से ₹20,000 करोड़ के बीच
    • Small-Cap: ₹5,000 करोड़ से कम
  • उदाहरण: अगर किसी कंपनी के एक शेयर की कीमत ₹200 है और उसके 10 करोड़ शेयर बाज़ार में हैं, तो उसका MCAP ₹2,000 करोड़ (₹200 × 10 करोड़) होगा। यह एक Small-Cap कंपनी होगी।

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4. Intrinsic Value (आंतरिक मूल्य)

Intrinsic Value किसी stock का असली या अनुमानित मूल्य होता है, जो उसके fundamentals (जैसे कमाई, assets और cash flow) पर आधारित होता है। यह market price से अलग हो सकता है।

  • यह क्यों जरूरी है? यह पहचानने में मदद करता है कि कोई stock undervalued (सस्ता) है या overvalued (महंगा)।

    • Intrinsic Value > Market Price: स्टॉक undervalued है (खरीदने का मौका)।
    • Intrinsic Value < Market Price: स्टॉक overvalued है।
  • उदाहरण: अगर आपके analysis के अनुसार किसी शेयर का intrinsic value ₹800 है, लेकिन वह बाज़ार में ₹600 पर trade हो रहा है, तो यह एक संभावित खरीद का अवसर हो सकता है।

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5. CAGR (Compound Annual Growth Rate)

CAGR यानी Compound Annual Growth Rate, यह दिखाती है कि एक तय समय में किसी investment में औसतन सालाना कितनी बढ़ोतरी हुई है। यह return की अस्थिरता को हटाकर एक steady growth rate बताता है।

  • फॉर्मूला: CAGR = [(Ending Value / Beginning Value)^(1/Number of Years)] - 1

  • यह क्यों जरूरी है? यह अलग-अलग investments के performance की तुलना करने के लिए एक बेहतरीन पैमाना है।

  • उदाहरण: मान लीजिए आपका ₹1,00,000 का investment 5 सालों में बढ़कर ₹2,00,000 हो जाता है। CAGR = [(2,00,000 / 1,00,000)^(1/5)] - 1 ≈ 14.87% इसका मतलब है कि आपके investment में सालाना औसतन 14.87% की growth हुई।

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6. Dividend Yield

Dividend Yield यह दिखाता है कि एक कंपनी अपने शेयर की कीमत की तुलना में हर साल कितना dividend (लाभांश) देती है। यह investors के लिए passive income का एक जरिया है।

  • फॉर्मूला: Dividend Yield = (Annual Dividend Per Share / Current Share Price) × 100

  • यह क्यों जरूरी है? यह उन investors के लिए खास है जो regular income चाहते हैं। एक high dividend yield आकर्षक हो सकता है, लेकिन यह भी पक्का करना जरूरी है कि कंपनी लगातार dividend देने में सक्षम है।

  • उदाहरण: अगर किसी शेयर की कीमत ₹500 है और कंपनी हर शेयर पर ₹25 का सालाना dividend देती है, तो dividend yield 5% (₹25 / ₹500 × 100) होगी।

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7. Face Value (FV)

Face Value किसी शेयर की nominal value होती है, जो कंपनी शेयर जारी करते समय तय करती है। यह आमतौर पर ₹1, ₹2, ₹5, या ₹10 होता है।

  • यह क्यों जरूरी है? Face Value का market price से कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन यह corporate actions जैसे stock split, bonus shares और dividend की calculation के लिए जरूरी है। Dividend की घोषणा हमेशा Face Value पर प्रतिशत के रूप में की जाती है।

  • उदाहरण: एक शेयर का Face Value ₹10 हो सकता है, लेकिन वह बाज़ार में ₹2,000 पर trade हो सकता है। अगर कंपनी 100% dividend की घोषणा करती है, तो इसका मतलब है कि वह ₹10 प्रति शेयर (₹10 का 100%) का dividend देगी, न कि ₹2,000 का।

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निष्कर्ष

इन financial ratios को समझना आपको एक जानकार और आत्मविश्वासी investor बनने में मदद करेगा।

  • EBITDA से profitability देखें।
  • D/E Ratio से risk का अंदाजा लगाएं।
  • MCAP से कंपनी का size जानें।
  • Intrinsic Value से शेयर का असली मूल्य पहचानें।
  • CAGR से growth rate को मापें।
  • Dividend Yield से passive income की क्षमता देखें।
  • Face Value को corporate actions के आधार के रूप में समझें।

अगली बार जब आप किसी कंपनी का analysis करें, तो इन metrics पर ज़रूर ध्यान दें।


यह लेख केवल जानकारी के लिए है और इसे निवेश की सलाह नहीं माना जाना चाहिए। निवेश से पहले हमेशा अपना खुद का research करें।

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