derivatives By Neelam

F&O क्या है? Futures और Options को समझिये - Beginner's Guide

Derivatives क्या हैं और ये कैसे काम करते हैं? इस गाइड में futures और options की मूल बातें, उनके उपयोग और भारतीय निवेशकों के लिए जोखिमों को समझें।

F&O क्या है? Futures और Options को समझिये - Beginner's Guide

क्या आपने कभी stock market में “F&O” या “derivatives” शब्द सुना है और सोचा है कि यह आखिर है क्या? Derivatives फाइनेंस की दुनिया के बहुत शक्तिशाली लेकिन जटिल tools हैं। इन्हें समझना आपको एक बेहतर निवेशक बना सकता है, लेकिन बिना जानकारी के इनमें trade करना बेहद जोखिम भरा हो सकता है।

आइए, derivatives की दुनिया को समझते हैं और futures और options की मूल बातें आसान भाषा में जानते हैं।

Derivatives क्या हैं?

Derivative एक फाइनेंशियल contract है जिसकी अपनी कोई वैल्यू नहीं होती, बल्कि यह अपनी वैल्यू किसी दूसरी चीज़ से लेता है (derive करता है)। इस “दूसरी चीज़” को underlying asset कहा जाता है। यह underlying asset कुछ भी हो सकता है - stock, stock market index (जैसे Nifty 50), सोना, या करेंसी।

इसे एक आसान उदाहरण से समझिए: दही का अपना कोई वजूद नहीं है, वह दूध से बनता है। यहाँ दूध underlying asset है और दही उसका derivative। दूध की क्वालिटी और कीमत, दही की क्वालिटी और कीमत पर असर डालेगी। ठीक इसी तरह, Nifty 50 index की वैल्यू में बदलाव उसके futures और options contracts की वैल्यू को प्रभावित करता है।

भारत में, दो सबसे लोकप्रिय तरह के derivatives हैं:

  1. Futures
  2. Options

इन्हीं दोनों को मिलाकर F&O कहा जाता है।

एक चित्र जिसमें एक स्टॉक को 'underlying asset' के रूप में दिखाया गया है और उससे जुड़े हुए 'futures' और 'options' contracts को दर्शाया गया है।

Futures Contracts को समझिए

एक futures contract दो पार्टियों के बीच एक समझौता है, जिसमें वे भविष्य की एक तय तारीख (expiry date) पर एक तय कीमत पर underlying asset खरीदने या बेचने के लिए राजी होते हैं। Futures में, खरीदार और विक्रेता दोनों के लिए contract को पूरा करना अनिवार्य (compulsory) होता है।

Futures contract की मुख्य बातें:

  • Expiry Date: हर futures contract की एक एक्सपायरी डेट होती है, जिसके बाद वह contract खत्म हो जाता है।
  • Lot Size: आप futures में एक-एक शेयर नहीं खरीद सकते। आपको शेयरों के एक तय ग्रुप में trade करना होता है, जिसे “lot size” कहते हैं। यह exchange पहले से तय करता है।
  • Contract Value: इसकी गिनती Lot Size * Futures Price करके की जाती है।
  • Margin: Futures contract में ट्रेड करने के लिए आपको पूरी contract value नहीं देनी पड़ती। आपको बस एक छोटा शुरुआती अमाउंट जमा करना होता है, जिसे “margin” कहते हैं। यह एक तरह की सिक्योरिटी डिपॉजिट है। Margin आपको कम पैसों में एक बड़ी पोजीशन लेने की सुविधा देता है, जिसे leverage कहते हैं।

उदाहरण: मान लीजिए Nifty 50 का futures 23,000 पर ट्रेड हो रहा है और उसका lot size 50 है। तो contract की कुल वैल्यू ₹11,50,000 (50 * 23,000) होगी। लेकिन यह पोजीशन लेने के लिए आपको सिर्फ margin (लगभग ₹1-1.5 लाख) देना होगा।

Options Contracts को समझिए

Options भी एक contract है, लेकिन यह futures से काफी अलग है। Option अपने खरीदार को एक अधिकार (right) देता है, लेकिन कोई मजबूरी (obligation) नहीं कि वह एक तय तारीख (expiry date) तक, एक तय कीमत (strike price) पर underlying asset खरीदे या बेचे।

इसका मतलब है कि अगर market आपकी उम्मीद के खिलाफ जाता है, तो आप सिर्फ अपना दिया हुआ premium गंवाकर contract से बाहर निकल सकते हैं।

Options दो तरह के होते हैं:

  1. Call Option: यह खरीदार को underlying asset खरीदने का अधिकार देता है। आप Call Option तब खरीदते हैं जब आपको लगता है कि कीमत बढ़ेगी
  2. Put Option: यह खरीदार को underlying asset बेचने का अधिकार देता है। आप Put Option तब खरीदते हैं जब आपको लगता है कि कीमत गिरेगी

Options से जुड़े जरूरी शब्द:

  • Strike Price: वह पहले से तय कीमत जिस पर आप asset खरीदने या बेचने का अधिकार पाते हैं।
  • Premium: यह वह फीस है जो आप option का अधिकार खरीदने के लिए चुकाते हैं। यह नॉन-रिफंडेबल होती है।
  • Leverage: Options में leverage बहुत ज्यादा होता है। आप एक छोटा premium देकर एक बड़ी वैल्यू के शेयरों को control कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, ₹5 लाख के शेयर खरीदने के बजाय, आप शायद ₹20,000 का premium देकर उन पर वैसी ही तेजी की उम्मीद पर दांव लगा सकते हैं।

एक चित्र जो Call और Put ऑप्शन के बीच अंतर दिखाता है। Call के लिए एक ऊपर की ओर तीर और Put के लिए नीचे की ओर तीर।

इस्तेमाल और चेतावनी: Hedging बनाम Speculation

Derivatives का इस्तेमाल मुख्य रूप से दो वजहों से होता है:

  1. Hedging (जोखिम कम करना): इसका मकसद अपने मौजूदा निवेश को संभावित नुकसान से बचाना है। यह एक इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने जैसा है। उदाहरण के लिए, अगर आपके पास बड़ी मात्रा में Reliance के शेयर हैं और आपको डर है कि कीमत गिर सकती है, तो आप Put Option खरीदकर अपने portfolio को hedge कर सकते हैं।
  2. Speculation (सट्टेबाजी): इसका मकसद सिर्फ कीमत में उतार-चढ़ाव से फायदा कमाना है, बिना underlying asset का मालिक बने। इसमें बहुत ज्यादा मुनाफे की संभावना होती है, लेकिन जोखिम भी उतना ही बड़ा होता है।

F&O में बड़ा जोखिम: SEBI की चेतावनी

Derivatives, खासकर F&O, नए और अनुभवहीन निवेशकों के लिए बहुत जोखिम भरे हैं। हाई leverage का मतलब है कि जितना बड़ा मुनाफा हो सकता है, उतना ही बड़ा नुकसान भी हो सकता है - और यह नुकसान आपकी शुरुआती पूंजी से भी ज्यादा हो सकता है।

बाजार नियामक SEBI की एक स्टडी से चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है: F&O सेगमेंट में 10 में से 9 retail निवेशक पैसा खो देते हैं। इन निवेशकों को औसतन लाखों का नुकसान हुआ है।

इसी वजह से, SEBI ने हाल ही में F&O trading को लेकर नियम कड़े किए हैं, ताकि केवल वही लोग इसमें ट्रेड करें जिन्हें इसकी गहरी समझ और जोखिम उठाने की क्षमता हो।

निष्कर्ष

Derivatives एक दोधारी तलवार हैं। वे जोखिम मैनेज करने के लिए बेहतरीन tools हो सकते हैं, लेकिन सट्टेबाजी के लिए इस्तेमाल किए जाने पर वे तेजी से आपकी पूंजी खत्म कर सकते हैं। F&O में ट्रेड करने से पहले, अच्छी तरह से रिसर्च करें, अपनी जोखिम क्षमता को समझें और हो सके तो किसी फाइनेंशियल सलाहकार से सलाह लें।

यह लेख केवल जानकारी देने के लिए है और इसे निवेश की सलाह न माना जाए। किसी भी निवेश से पहले अपनी खुद की रिसर्च जरूर करें।

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