AI और नौकरियों का भविष्य: क्या इंसान एक 'Permanent Underclass' बनकर रह जाएगा?
AI को लेकर दो तरह की बातें हो रही हैं: एक तरफ़ यह हमारी productivity बढ़ाएगा, दूसरी तरफ़ यह करोड़ों नौकरियां खत्म कर देगा। क्या सच में हम एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ ज़्यादातर लोग एक 'permanent underclass' का हिस्सा होंगे? आइए इस बहस के दोनों पक्षों को समझते हैं।

आजकल technology और finance की दुनिया में एक बहस बहुत तेज़ी से चल रही है: Artificial Intelligence (AI) हमारे भविष्य को कैसे बदलेगा? खासकर, इसका हमारी नौकरियों और समाज पर क्या असर होगा? कुछ experts का मानना है कि हम ज़बरदस्त तरक्की के एक नए दौर में जा रहे हैं, जबकि दूसरों को एक ऐसे डरावने भविष्य का डर है, जहाँ ज़्यादातर इंसान आर्थिक तौर पर बेकार हो जाएँगे।
यह कोई मामूली बहस नहीं है। इसके केंद्र में यह डर है कि अगले कुछ सालों में, इंसान की मेहनत (labor) की कीमत लगभग शून्य हो जाएगी। AI और automation इतने काबिल हो जाएँगे कि ज़्यादातर काम मशीनें ही करने लगेंगी। इसका नतीजा यह होगा कि जिनके पास capital (पूंजी, कंपनियाँ, AI models) है, वे और अमीर होते जाएँगे, और जिनके पास बेचने के लिए सिर्फ़ अपनी मेहनत है, वे एक स्थायी ‘अंडरक्लास’ (permanent underclass) का हिस्सा बन जाएँगे।
आइए इस गंभीर विषय के दोनों पक्षों को गहराई से समझते हैं।
डर वाला नज़रिया: क्या AI एक परमानेंट ‘अंडरक्लास’ बनाएगा?
जो लोग इस अँधेरे भविष्य की बात कर रहे हैं, उनका तर्क काफ़ी सीधा है। वे कहते हैं कि यह औद्योगिक क्रांति जैसा नहीं है। पहले की technology, जैसे ट्रैक्टर या फैक्ट्री की मशीनें, इंसान के शारीरिक काम (physical labor) की जगह लेती थीं। लेकिन AI इंसान की सोचने-समझने की क्षमता (cognitive abilities) को टक्कर दे रहा है—सोचना, analysis करना, लिखना, code करना, और यहाँ तक कि creative काम भी।
इस तर्क के मुताबिक, जब AI लगभग हर वो काम कर सकता है जो एक औसत white-collar worker करता है, तो कंपनियों के लिए इंसानों को नौकरी पर रखने की कोई बड़ी वजह नहीं बचेगी।
इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं:
- पैसे का केंद्रीकरण (Capital Accumulation): सारा मुनाफ़ा उन लोगों की जेब में जाएगा जो AI system और रोबोट्स के मालिक हैं। यह एक ऐसा चक्र बना देगा, जहाँ पैसा और तेज़ी से पैसे को अपनी ओर खींचेगा।
- स्थायी अंडरक्लास का निर्माण: करोड़ों लोग, जिनके skills अब AI के सामने पुराने पड़ चुके हैं, उनके पास कमाई का कोई ज़रिया नहीं बचेगा। वे आर्थिक सीढ़ी पर ऊपर चढ़ने की क्षमता खो देंगे।
- सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता: जब देश की एक बड़ी आबादी आर्थिक रूप से बेसहारा महसूस करेगी, तो समाज में उथल-पुथल मच सकती है। इससे निपटने के लिए सरकार को बड़े कदम उठाने पड़ सकते हैं, जैसे संपत्ति का पुनर्वितरण (redistribution), या फिर हिंसक क्रांति का खतरा भी बन सकता है।
यह नज़रिया कुछ-कुछ कार्ल मार्क्स के उस सिद्धांत जैसा लगता है जहाँ पूंजीवाद अपने चरम पर पहुँचकर मुट्ठी भर अमीर élite और एक विशाल गरीब मज़दूर वर्ग बनाता है। फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि इस बार मज़दूर वर्ग के पास करने के लिए काम ही नहीं होगा।
उम्मीद वाला नज़रिया: इतिहास कहता है, डरने की बात नहीं
दूसरी ओर, एक मज़बूत तर्क यह भी है कि यह डर बेवजह है। इतिहास गवाह है कि हर बड़ी तकनीकी क्रांति के समय ऐसी ही भविष्यवाणियाँ की गई थीं, और वे हमेशा ग़लत साबित हुईं।
- नई नौकरियों का जन्म: जब खेती में ट्रैक्टर आए, तो 90% किसान बेरोज़गार हो गए। लेकिन वे शहरों में गए और फैक्ट्री वर्कर, मैनेजर, इंजीनियर और service provider बने। जब कारें आईं, तो घोड़ा-गाड़ी चलाने वाले बेरोज़गार हुए, लेकिन auto mechanic, हाईवे बनाने वाले, और मोटल चलाने वालों के लिए लाखों नई नौकरियाँ पैदा हुईं। आशावादियों का मानना है कि AI भी ऐसी ही नई भूमिकाएँ और industry बनाएगा जिनके बारे में हम आज सोच भी नहीं सकते।
- इंसानी ज़रूरतें कभी खत्म नहीं होतीं: इंसान की इच्छाएँ और ज़रूरतें अनंत हैं। जैसे ही हमारी बुनियादी ज़रूरतें आसानी से पूरी होने लगेंगी, हम नई चीज़ों और सेवाओं की माँग करेंगे। शायद भविष्य में लोग मानवीय स्पर्श (human touch), creativity, और असली अनुभवों के लिए ज़्यादा पैसे देंगे—जैसे एक इंसान द्वारा बनाया गया खाना, हाथ से बनी कला, या एक इंसान द्वारा दी गई सलाह।
- कम लागत और बेहतर जीवन: अगर AI उत्पादन की लागत को लगभग शून्य कर देता है, तो चीज़ें और सेवाएँ भी बहुत सस्ती हो जाएँगी। इससे हर किसी का जीवन स्तर बेहतर हो सकता है। हो सकता है कि जीने का खर्च इतना कम हो जाए कि काम करना एक ज़रूरत न रहकर एक विकल्प बन जाए।
- Business करना सबके लिए आसान: Open-source AI models एक अकेले व्यक्ति को वह ताकत दे सकते हैं जो आज एक बड़ी कंपनी के पास है। कोई भी व्यक्ति कम लागत में एक global product या service बना सकता है, जिससे पैसा कुछ लोगों के हाथ में जमा होने के बजाय समाज में फैलेगा।
इस नज़रिए के अनुसार, AI हमारी मेहनत को खत्म नहीं करेगा, बल्कि उसे और ज़्यादा productive बनाएगा। यह हमें उबाऊ और दोहराए जाने वाले कामों से आज़ाद करेगा ताकि हम ज़्यादा creative और ज़रूरी कामों पर ध्यान दे सकें।
तो असलियत क्या है? शायद बीच का कोई रास्ता
सच शायद इन दोनों के बीच में कहीं है। यह सोचना कि कुछ ही सालों में सब कुछ बदल जाएगा, शायद जल्दबाज़ी होगी। Technology को समाज में पूरी तरह से अपनाने में वक़्त लगता है। Hardware बनाना और उसे असल दुनिया में लागू करना बहुत मुश्किल है। Regulation, क़ानूनी अड़चनें और कंपनियों की पुरानी आदतें इस बदलाव की रफ़्तार को धीमा करेंगी।
लेकिन इस बदलाव को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करना भी एक ग़लती होगी। हमें कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब खोजने होंगे:
- बदलाव का दौर (Transition Period): भले ही भविष्य में नई नौकरियाँ बनें, लेकिन पुरानी नौकरियों के खत्म होने और नई के बनने के बीच के समय में क्या होगा? इस दौरान लाखों लोगों की मदद कैसे की जाएगी?
- Universal Basic Income (UBI): क्या UBI जैसी नीतियाँ ज़रूरी हो जाएँगी, जहाँ सरकार हर नागरिक को जीने के लिए एक न्यूनतम आय दे? यह एक विवादास्पद लेकिन महत्वपूर्ण विचार है जिस पर अब गंभीर चर्चा हो रही है।
- शिक्षा और नई Skills: हमें अपने education system को पूरी तरह से बदलना होगा। रटने की बजाय, हमें बच्चों को critical thinking, creativity, problem-solving और emotional intelligence जैसे skills सिखाने होंगे जिन्हें AI आसानी से copy नहीं कर सकता।
निष्कर्ष: डरें नहीं, तैयार रहें
भविष्य के बारे में निश्चित रूप से कुछ भी कहना असंभव है। AI एक शक्तिशाली औज़ार है। इसका इस्तेमाल मानवता की भलाई के लिए भी हो सकता है और समाज में असमानता की खाई को और गहरा करने में भी। नतीजा technology पर नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक और राजनीतिक फ़ैसलों पर निर्भर करेगा।
एक व्यक्ति के तौर पर, सबसे अच्छी रणनीति यही है कि हम इस बदलाव के लिए तैयार रहें। लगातार सीखते रहें, नए skills अपनाएँ, और उन क्षमताओं को विकसित करें जो हमें मशीन से अलग बनाती हैं। अपना खुद का काम शुरू करने (entrepreneurship) और अपनी समस्याओं को खुद हल करने की मानसिकता शायद पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाएगी।
यह डरने का नहीं, बल्कि जागरूक और तैयार रहने का समय है। भविष्य लिखा नहीं गया है; इसे हम अपने आज के फ़ैसलों से लिखेंगे।
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